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थाईलैंड रेपो दर

शेयर मूल्य

1.995 %
परिवर्तन +/-
-0.21 %
प्रतिशत में परिवर्तन
-10.02 %

थाईलैंड में मौजूदा रेपो दर 1.995 % है। थाईलैंड में रेपो दर 1/3/2025 को घटकर 1.995 % हो गई, जबकि 1/2/2025 को यह 2.205 % थी। 1/4/2020 से 27/3/2025 तक, थाईलैंड में औसत GDP 1.29 % थी। सबसे उच्च स्तर 3/10/2024 को 2.5 % पर पहुँचा, जबकि सबसे कम स्तर 30/10/2020 को 0.48 % दर्ज किया गया।

स्रोत: Bank of Thailand

रेपो दर

  • ३ वर्ष

  • 5 वर्ष

  • मैक्स

रेपो दर

रेपो दर इतिहास

तारीखमूल्य
1/3/20251.995 %
1/2/20252.205 %
1/1/20252.244 %
1/12/20242.244 %
1/11/20242.245 %
1/10/20242.364 %
1/9/20242.491 %
1/8/20242.491 %
1/7/20242.492 %
1/6/20242.492 %
1
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रेपो दर के समान मैक्रो संकेतक

नामवर्तमानपिछला फ्रीक्वेंसी
🇹🇭
इंटरबैंक दर
2.15 %2.15 %frequency_daily
🇹🇭
केंद्रीय बैंक का बैलेंस शीट
9.296 जैव. THB9.261 जैव. THBमासिक
🇹🇭
जमा ब्याज दर
1.67 %1.37 %वार्षिक
🇹🇭
निजी क्षेत्र को दिए गए क्रेडिट
4.768 जैव. THB4.769 जैव. THBमासिक
🇹🇭
बैंकों का बैलेंस शीट
25.164 जैव. THB25.126 जैव. THBमासिक
🇹🇭
ब्याज दर
2 %2.25 %frequency_daily
🇹🇭
मुद्रा आपूर्ति M0
2.423 जैव. THB2.389 जैव. THBमासिक
🇹🇭
मुद्रा आपूर्ति M1
3.231 जैव. THB3.244 जैव. THBमासिक
🇹🇭
मुद्रा आपूर्ति M2
23.256 जैव. THB23.096 जैव. THBमासिक
🇹🇭
मुद्रा भंडार
244.756 अरब USD242.084 अरब USDमासिक
🇹🇭
मुद्रा समूह M3
26.487 जैव. THB26.341 जैव. THBमासिक

थाईलैंड में, THOR दर बैंक से बैंक के बीच रातभर के निजी पुनर्खरीद दर को संदर्भित करती है।

अन्य देशों के लिए मैक्रो-पेज एशिया

रेपो दर क्या है?

रेपो रेट (Repo Rate या Repurchase Agreement Rate) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा उपयोग किया जाने वाला प्रमुख वित्तीय साधन है, जो मौद्रिक नीति के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह दर उन बैंकों द्वारा केन्द्रीय बैंक से अल्पकालिक निधि उधार लेने के लिए भुगतान की जाने वाली ब्याज दर को दर्शाता है। इस दर का प्रमुख उद्देश्य देश में मुद्रा आपूर्ति और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है। रेपो रेट प्राथमिक तौर पर वित्तीय प्रणाली में तरलता (लिक्विडिटी) बनाए रखने और अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को समायोजित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट को बढ़ाता है, तो बैंक भी उधारी की लागत बढ़ा देते हैं, जिससे ऋण लेना महंगा हो जाता है और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके विपरीत, रेपो रेट में कटौती का मतलब होता है कि बैंक सस्ते दरों पर रिजर्व बैंक से उधार ले सकते हैं, जिससे ऋण लेने के प्रोत्साहन में वृद्धि होती है और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है। रेपो रेट का प्रभाव न केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर होता है, बल्कि यह आम जनता, व्यवसायों और पूरे देश की आर्थिक स्थिति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। जब रेपो रेट कम होता है, तो बैंकों द्वारा प्रदान किए जाने वाले ऋण, जैसे होम लोन, वाहन ऋण, और कारोबारी ऋण आदि की ईएमआई भी कम हो जाती है, जिससे उधारकर्ताओं पर वित्तीय बोझ कम होता है। इसके परिणामस्वरूप बाजार में उपभोक्ता खर्च बढ़ता है और उद्यमिता को प्रोत्साहन मिलता है। भारत में रेपो रेट की समीक्षा और समायोजन भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा की जाती है। यह समिति आर्थिक आंकड़ों और वैश्विक तथा घरेलू आर्थिक दृष्टिकोणों का गहन विश्लेषण करती है। इसके बाद, आवश्यकतानुसार मौद्रिक नीति में परिवर्तन करने का निर्णय लिया जाता है। रेपो रेट को नियत अंतराल पर संशोधित किया जाता है, और यह प्रक्रिया आमतौर पर वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य के हिस्से के रूप में की जाती है। रेपो रेट का वैश्विक परिप्रेक्ष्य भी महत्वपूर्ण है। विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपनी आर्थिक परिस्थितियों और लक्ष्यों के अनुसार अपनी मौद्रिक नीतियों और रेपो रेट में बदलाव करते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका का फ़ेडरल रिजर्व, यूरोप का यूरोपीय सेंट्रल बैंक, और इंग्लैंड का बैंक ऑफ इंग्लैंड समय-समय पर अपनी रेपो रेट को संशोधित करते हैं। इससे वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी प्रभाव पड़ता है और निवेश के प्रवाह को दिशा मिलती है। रेपो रेट के संकेतक (Indicators) बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये आर्थिक संकेतक विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर, मुद्रास्फीति दर, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, और बेरोजगारी दर। इन संकेतकों का विश्लेषण करते हुए रिजर्व बैंक यह निर्धारित करता है कि मौद्रिक नीति को सख्त, नरम या तटस्थ रखना चाहिए। इसके अलावा, नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) का भी रेपो रेट से गहरा संबंध है। जब बैंक एनपीए की समस्या से जूझते हैं, तो वे उधारी को लेकर सतर्क हो जाते हैं। ऐसे में, रेपो रेट में कटौती बैंकों को अतिरिक्त तरलता प्रदान कर सकती है और एनपीए की समस्या को कुछ हद तक कम कर सकती है। रेपो रेट की गतिशीलता विशेष रूप से वित्तीय संकट के दौरान देखी जा सकती है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान और कोविड-19 महामारी के प्रारंभिक चरणों में, केंद्रीय बैंकों ने रेपो रेट में भारी कटौती की थी। इसका उद्देश्य वित्तीय प्रणाली में तरलता सुनिश्चित करना और आर्थिक मंदी को कम करना था। रेपो रेट के बढ़ने और घटने का सीधा प्रभाव बाजार में स्वतंत्र ऋण दरों (Free Loan Rates) पर पड़ता है। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में वृद्धि करता है, तो धन की उपलब्धता घट जाती है और यह ऋण की लागत को बढ़ा देता है। इसके विपरीत, रेपो रेट में कटौती से बैंक अपनी लेंडिंग रेट को कम कर देते हैं, जिससे ऋण लेना सस्ता हो जाता है। रुपया और रेपो रेट का भी घनिष्ठ संबंध है। जब भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करता है, तो मुद्रा का प्रसार बढ़ता है और रुपये का अवमूल्यन होने की संभावना रहती है। इसके विपरीत, रेपो रेट में वृद्धि से रुपये की मजबूती हो सकती है। अंततः, रेपो रेट की प्राथमिकता और इसका महत्व भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य है। यह मौद्रिक नीति का मजबूत माध्यम है जो देश की आर्थिक स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। Eulerpool में, हम उच्चतम गुणवत्ता के मैक्रोइकोनॉमिक डाटा प्रदान करते हैं, जो हमारे उपयोगकर्ताओं को वित्तीय निर्णय लेने में मदद करता है। हमारी वेबसाइट पर आप रेपो रेट के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं, ताकि आप अद्यतित रहें और सूचित निर्णय ले सकें।