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स्वीडन घरेलू खर्च

शेयर मूल्य

0.8 %
परिवर्तन +/-
+0.7 %
प्रतिशत में परिवर्तन
+155.56 %

स्वीडन में घरेलू खर्च का वर्तमान मूल्य 0.8 % है। स्वीडन में घरेलू खर्च 1/2/2024 को बढ़कर 0.8 % हो गया, जबकि यह 1/1/2024 को 0.1 % था। 1/1/2001 से 1/4/2024 तक, स्वीडन में औसत GDP 1.75 % था। उच्चतम स्तर 1/5/2021 को 10.7 % के साथ पहुँचा, जबकि सबसे कम मूल्य 1/4/2020 को -11.1 % दर्ज किया गया।

स्रोत: Statistics Sweden

घरेलू खर्च

  • ३ वर्ष

  • 5 वर्ष

  • 10 वर्ष

  • २५ वर्ष

  • मैक्स

घरेलू खर्च

घरेलू खर्च इतिहास

तारीखमूल्य
1/2/20240.8 %
1/1/20240.1 %
1/12/20231.1 %
1/10/20230.7 %
1/8/20230.1 %
1/7/20231.1 %
1/1/20231.1 %
1/10/20220.1 %
1/9/20221.4 %
1/8/20221.8 %
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घरेलू खर्च के समान मैक्रो संकेतक

नामवर्तमानपिछला फ्रीक्वेंसी
🇸🇪
उपभोक्ता व्यय
697.348 अरब SEK699.38 अरब SEKतिमाही
🇸🇪
उपभोक्था विश्वास
93.3 points91.3 pointsमासिक
🇸🇪
उपलब्ध व्यक्तिगत आय
686.084 अरब SEK667.702 अरब SEKतिमाही
🇸🇪
खुदरा बिक्री YoY
0.8 %0.7 %मासिक
🇸🇪
खुदरा बिक्री मासिक परिवर्तन
-0.3 %0.3 %मासिक
🇸🇪
घरेलू आय के मुकाबले परिवारों का कर्ज
168.45 %171.92 %वार्षिक
🇸🇪
घरेलू ऋण से सकल घरेलू उत्पाद
83.9 % of GDP84.8 % of GDPतिमाही
🇸🇪
घरेलू व्यय MoM
-0.6 %0 %मासिक
🇸🇪
निजी क्षेत्र का क्रेडिट
0.461 %0.422 %मासिक
🇸🇪
पेट्रोल की कीमतें
1.69 USD/Liter1.74 USD/Literमासिक
🇸🇪
व्यक्तिगत बचत
20.61 %11.92 %तिमाही

2013 से, सांख्यिकी स्वीडन ने घरेलू खपत पर नए मासिक आंकड़े जारी करना शुरू किया। ये आंकड़े व्यावसायिक चक्र के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक हैं क्योंकि घरेलू खपत कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 47 प्रतिशत है।

अन्य देशों के लिए मैक्रो-पेज यूरोप

घरेलू खर्च क्या है?

'हाउसहोल्ड स्पेंडिंग' एक महत्वपूर्ण मैक्रोइकोनॉमिक कैटेगरी है जो किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य और स्थायित्‍व का आकलन करने में निर्णायक होती है। यह एक पथदर्शी संकेतक है जो न केवल अर्थव्यवस्था के मौलिक संतुलन का प्रतीक है, बल्कि यह भी बताती है कि विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक नीतियां लोगों और उनके उपभोग पर किस प्रकार से प्रभाव डालती हैं। हाउसहोल्ड स्पेंडिंग या घर-परिवार द्वारा किया गया खर्च, आमतौर पर व्यक्तिगत उपभोग व्यय के नाम से भी जाना जाता है। इसमें वे सभी खर्च शामिल होते हैं जो किसी परिवार द्वारा अपने जीवन की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। इसमें भोजन, वस्त्र, किराना, आवास, चिकित्सा, शिक्षा और परिवहन जैसी विभिन्न मदें शामिल होती हैं। इन सभी खर्चों का कुल योग हमें यह समझने में मदद करता है कि अर्थव्यवस्था में समग्र उपभोग का स्तर क्या है और इसका जीडीपी में कितना योगदान है। जब हम हाउसहोल्ड स्पेंडिंग की बात करते हैं, तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम विभिन्न सामाजिक-आर्थिक घटकों को भी ध्यान में रखें। उदाहरण के लिए, विभिन्न आय वर्गों के लोगों द्वारा किया गया खर्च भिन्न-भिन्न होता है। उच्च आय वर्ग के लोगों का खर्च काफी अधिक होता है, जबकि निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग अपने सीमित संसाधनों के साथ काम चलाते हैं। इस प्रकार, आय असमानता भी हाउसहोल्ड स्पेंडिंग पर असर डालती है। हाउसहोल्ड स्पेंडिंग का सीधा संबंध बाजार की मांग से होता है। जब लोग अधिक खर्च करते हैं, तो बाजार में वस्त्र और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। इससे उत्पादन में वृद्धि होती है और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप, पूरी अर्थव्यवस्था में एक सकारात्मक चक्र चलता है, जहां उच्च उपभोग उच्च उत्पादन और उच्च रोजगार को बढ़ावा देता है। दूसरी ओर, जब हाउसहोल्ड स्पेंडिंग में कमी आती है, तो इसका निगेटिव प्रभाव भी देखने को मिलता है। उत्पादन कम होता है, बेरोजगारी बढ़ती है और आर्थिक संकुचन का संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। कोविड-19 महामारी ने हाउसहोल्ड स्पेंडिंग पर गहरा प्रभाव डाला। लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के चलते अनेक परिवारों की आय में कमी आई और वे अपने व्यय को सीमित करने पर विवश हो गए। इसने बाजार में मांग को कम किया और उत्पादन तथा रोजगार दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इस विपरीत समय में हाउसहोल्ड स्पेंडिंग के आंकड़ों ने नीति निर्माताओं को आर्थिक वसूली के प्रयासों में मदद की। भारत जैसे विकासशील देशों में हाउसहोल्ड स्पेंडिंग का महत्व और भी अधिक है। यहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा निम्न और मध्यम आय वर्ग से आता है, जिनके खर्च का सीधा संबंध उनकी जीवन स्थिति से होता है। सरकारें विभिन्न योजनाओं और नीतियों के माध्यम से इन वर्गों की सहायता करने का प्रयास करती हैं, ताकि उनकी क्रय शक्ति बनी रहे और वे समग्र अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकें। एक और महत्वपूर्ण पहलू जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, वह है डिजिटल उपभोग का उदय। इंटरनेट और मोबाइल तकनीक के प्रसार ने ऑनलाइन खरीदारी और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिया है। इसके परिणामस्वरूप, हाउसहोल्ड स्पेंडिंग के पैटर्न में काफी बदलाव आया है। लोग अब पहले की तरह मॉल और बाजारों में नहीं जाते, बल्कि अपने घर से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेते हैं। इस डिजिटल युग में ई-कॉमर्स साइट्स और ऑनलाइन मार्केटप्लेस का विकास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और इसे भी ध्यान में रखना आवश्यक है। हाउसहोल्ड स्पेंडिंग पर महंगाई का भी विशेष प्रभाव पड़ता है। जब महंगाई दर बढ़ती है, तो वस्त्र और सेवाओं की कीमतें भी बढ़ती हैं। इससे लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होती है और वे अपने खर्च को सीमित करने लगते हैं। महंगाई की मार मुख्यतः निम्न आय वर्ग के लोगों पर अधिक होती है, क्योंकि उनके पास सीमित संसाधन होते हैं और इन्हें इस स्थिति का सामना करने में कठिनाई होती है। भारत में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हाउसहोल्ड स्पेंडिंग के पैटर्न में भी अंतर होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिकतर कृषि और संबंधित कार्यों पर निर्भर होते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र और उद्योग की प्रधानता होती है। इसके कारण, इन दोनों क्षेत्रों के खर्च के पैटर्न में भी भिन्नता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर अधिक खर्च होता है, जबकि शहरी क्षेत्र के लोग आधुनिक जीवन शैली से संबंधित चीजों पर अधिक खर्च करते हैं। नीति निर्माण में हाउसहोल्ड स्पेंडिंग का महत्व नकारा नहीं जा सकता। सरकारी नीतियों का प्रभाव सीधा सीधे हाउसहोल्ड स्पेंडिंग पर पड़ता है, चाहे वह टैक्सेशन, सब्सिडी, या सामाजिक सुरक्षा योजनाएं हो। उदाहरण के लिए, सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे कार्यक्रम गरीब वर्ग के लोगों के खर्च को कम करने में सहायक होते हैं। इसी तरह, रोजगार गारंटी योजनाएं लोगों की आय में स्थायित्व लाने का प्रयास करती हैं, जिससे उनका खर्च स्तर बनाए रखा जा सके। सारांश में, हाउसहोल्ड स्पेंडिंग किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का दिल है। इसकी समझ न केवल व्यवसायिक और औद्योगिक रणनीतियों के लिए आवश्यक है, बल्कि सरकारी नीतियों और आर्थिक योजनाओं के लिए भी। हाउसहोल्ड स्पेंडिंग के पैटर्न का अध्ययन और विश्लेषण आर्थिक प्रबंधन और स्थायित्‍व के लिए अति आवश्यक है। अतः हाउसहोल्ड स्पेंडिंग पर गहन शोध और अवलोकन करना निष्ठा मामलों में किसी भी सफल अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य है।